ऑस्ट्रेलियाई स्वतंत्र सीनेटर Lidia Thorpe का विरोध हाल ही में एक बड़ी चर्चा का विषय बन गया,
जब उन्होंने किंग चार्ल्स के आधिकारिक स्वागत समारोह के दौरान अपना विरोध प्रकट किया।
थॉर्प ने स्पष्ट रूप से कहा कि वे किंग को अपने राजा के रूप में नहीं मानती हैं और उन्होंने यह
भी कहा कि यह उनकी भूमि नहीं है। इस तरह के तीखे शब्दों ने केवल ऑस्ट्रेलिया में नहीं,
बल्कि वैश्विक स्तर पर लोगों का ध्यान खींचा। उनका यह विरोध कई सवाल उठाता है
और ऑस्ट्रेलियाई समाज में आदिवासी अधिकारों की स्थिति पर नई बहस को जन्म देता है।
Lidia Thorpe का विरोध क्यों किया गया?
Lidia Thorpe का विरोध मुख्य रूप से ब्रिटिश साम्राज्य और उसके द्वारा आदिवासी समुदायों पर
किए गए अत्याचारों के खिलाफ था। थॉर्प का कहना है कि किंग चार्ल्स और उनके पूर्वजों की नीतियों ने
आदिवासी लोगों के साथ अन्याय किया है। उन्होंने कहा, “मैं चाहती हूँ कि दुनिया हमारे लोगों की दुर्दशा
को जाने और किंग इसके लिए माफी मांगें।” यह उनका एक सशक्त प्रयास था
जिससे उन्होंने आदिवासी अधिकारों के मुद्दे को सामने लाने का प्रयास किया।
इंस्टाग्राम पर Lidia Thorpe का विवादित चित्र
थॉर्प के विरोध के कुछ समय बाद, उनके इंस्टाग्राम अकाउंट पर एक विवादित कार्टून साझा किया गया,
जिसमें किंग चार्ल्स का सिर काटा हुआ दिखाया गया था। थॉर्प ने इस पोस्ट को तुरंत हटा दिया और कहा
कि यह उनकी जानकारी के बिना उनके किसी स्टाफ सदस्य द्वारा साझा किया गया था। उन्होंने कहा,
“मैं जानबूझकर ऐसा कुछ भी नहीं साझा करना चाहती जो किसी के खिलाफ हिंसा को बढ़ावा दे।”
आदिवासी समुदाय की प्रतिक्रिया Lidia Thorpe के विरोध पर
Lidia Thorpe का विरोध आदिवासी समुदाय के भीतर मिश्रित प्रतिक्रियाएं उत्पन्न करने वाला था।
कुछ ने इसे बहादुरी का कदम माना, जबकि अन्य ने इसे “शर्मनाक” और “असम्मानजनक” कहा।
एक आदिवासी नेता, आंटी वायलेट शेरिडन ने कहा, “लिडिया थॉर्प मेरे और मेरे लोगों की आवाज़ नहीं हैं।
” दूसरी ओर, वकील और लेखक वेनेसा टर्नबुल-रॉबर्ट्स ने थॉर्प का समर्थन करते हुए कहा,
“जब थॉर्प बोलती हैं, तो उनके साथ पूर्वज होते हैं।”
राजनीतिक प्रतिक्रिया और Lidia Thorpe का विरोध
इस घटना ने ऑस्ट्रेलियाई राजनीति में एक बड़ा मुद्दा बन गया है। प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज़ ने कहा
कि थॉर्प का व्यवहार वह नहीं है जो ऑस्ट्रेलियाई जनता अपने संसद सदस्यों से अपेक्षा करती है।
वहीं, विपक्षी नेता पीटर डटन ने थॉर्प के इस्तीफे की मांग की।
थॉर्प ने उनके इस बयान का जवाब देते हुए कहा,
“मैं अगले तीन साल तक यहाँ रहूंगी, इसलिए सच्चाई सुनने के लिए तैयार रहें।”
दीर्घकालिक प्रभाव के विरोध का
Lidia Thorpe का विरोध और उनके विवादास्पद बयानों ने ऑस्ट्रेलिया में आदिवासी अधिकारों
पर एक नई चर्चा को जन्म दिया है। यह घटना लंबे समय तक ऑस्ट्रेलियाई समाज में आदिवासी मुद्दों
पर चर्चा को जीवित रख सकती है। कुछ लोग इसे विभाजनकारी राजनीति मानते हैं,
जबकि अन्य इसे एक आवश्यक संघर्ष मानते हैं।
भविष्य
थॉर्प का विरोध केवल एक पल का मामला नहीं है; यह एक दीर्घकालिक सामाजिक परिवर्तन का प्रतीक हो सकता है।
उन्होंने जो मुद्दे उठाए हैं, वे न केवल ऑस्ट्रेलिया के लिए, बल्कि अन्य देशों के लिए भी महत्वपूर्ण हैं,
जहाँ पर उपनिवेशीकरण का प्रभाव अभी भी महसूस किया जा रहा है।
उनके कदम ने अन्य लोगों को भी अपनी आवाज उठाने के लिए प्रेरित किया है,
जो अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं।
नतीजा
लिडिया थॉर्प का यह विरोध न केवल आदिवासी अधिकारों की लड़ाई का प्रतीक है,
बल्कि यह एक ऐसे समय में भी महत्वपूर्ण है जब ऑस्ट्रेलिया अपने साम्राज्यवादी अतीत को देखने की कोशिश कर रहा है।
उनके विरोध ने इस बात को उजागर किया है कि आदिवासी लोग अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए कितने तैयार हैं।
क्या यह विरोध बदलाव का संकेत है या विभाजन की राजनीति को बढ़ावा देता है?
यह सवाल ऑस्ट्रेलियाई समाज के लिए महत्वपूर्ण है।
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