लाल बहादुर शास्त्री का नाम भारत के इतिहास में सादगी, ईमानदारी और दृढ़ संकल्प के प्रतीक के रूप में दर्ज है।
उनका प्रधानमंत्री बनना भारतीय राजनीति का एक महत्वपूर्ण मोड़ था। मोरारजी देसाई जैसे अनुभवी नेताओं से
टक्कर लेने के बाद, शास्त्री जी का चयन कईयों के लिए एक चौंकाने वाला निर्णय था।
आइए जानते हैं कि आखिर कैसे शास्त्री जी इस प्रतिष्ठित पद तक पहुंचे।
मोरारजी देसाई से टक्कर
जब पंडित जवाहरलाल नेहरू का 1964 में निधन हुआ, तो देश के दूसरे प्रधानमंत्री का चुनाव एक चुनौतीपूर्ण कार्य था।
उस समय मोरारजी देसाई, जो देश के वित्त मंत्री और कांग्रेस पार्टी के एक मजबूत नेता थे, इस पद के प्रमुख दावेदार
माने जा रहे थे। उनके पास अनुभव और वरिष्ठता दोनों थी, लेकिन शास्त्री जी की विनम्रता और
नेहरू के साथ उनकी निकटता ने उन्हें एक मजबूत उम्मीदवार बना दिया।
शास्त्री जी का स्वास्थ्य उस समय चिंता का विषय था, लेकिन उनकी राजनीति में पकड़ और
कांग्रेस पार्टी के साथ उनके गहरे संबंध उन्हें प्रधानमंत्री बनने की दौड़ में बनाए रखे।
लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री जी का सरल व्यक्तित्व
लाल बहादुर शास्त्री के व्यक्तित्व की सादगी ही उनकी सबसे बड़ी ताकत थी।
उन्हें न केवल एक सरल नेता के रूप में देखा जाता था, बल्कि उनकी समझदारी
और संतुलनपूर्ण निर्णय क्षमता ने उन्हें अन्य नेताओं से अलग खड़ा किया। शास्त्री जी के
बारे में कहा जाता है कि वे उन नेताओं में से थे जिन्हें कोई भी पार्टी का सदस्य नापसंद नहीं करता था।
उनकी यही स्वीकृति उन्हें नेहरू के बाद प्रधानमंत्री पद का प्रबल दावेदार बना रही थी।
कांग्रेस के नेताओं की भूमिका
कांग्रेस पार्टी में उस समय कई दिग्गज नेता थे, जिनमें मोरारजी देसाई, जगजीवन राम,
गुलजारीलाल नंदा जैसे नेता प्रमुख थे। लेकिन जब प्रधानमंत्री पद का सवाल उठा, तो पार्टी में
आम सहमति की आवश्यकता थी। कांग्रेस अध्यक्ष के कामराज की भूमिका इस प्रक्रिया में बेहद
महत्वपूर्ण थी। उन्होंने पार्टी के भीतर एक सामंजस्य स्थापित किया, जिससे शास्त्री जी के पक्ष में माहौल बनने लगा।
मोरारजी का फैसला
मोरारजी देसाई ने प्रधानमंत्री पद के लिए शास्त्री जी से मुकाबला किया, लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया,
यह स्पष्ट होता गया कि पार्टी में शास्त्री जी को अधिक समर्थन मिल रहा है। शास्त्री जी की राजनीतिक सादगी
और देश के प्रति उनकी ईमानदारी ने उन्हें जनता और पार्टी के बीच बेहद लोकप्रिय बना दिया। अंततः,
मोरारजी देसाई ने शास्त्री जी के पक्ष में अपना समर्थन दे दिया, यह मानते हुए कि कांग्रेस
की एकता देश के भविष्य के लिए सर्वोपरि है।
शास्त्री जी का प्रधानमंत्री बनना
2 जून 1964 को, लाल बहादुर शास्त्री को सर्वसम्मति से कांग्रेस का नेता चुना गया,
और उन्होंने भारत के दूसरे प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली। यह शपथ ग्रहण एक महत्वपूर्ण मोड़ था,
क्योंकि शास्त्री जी को न केवल भारत के प्रधानमंत्री के रूप में चुना गया था,
बल्कि उन्होंने देश को एक नई दिशा देने का संकल्प लिया था।
लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री जी की विरासत
प्रधानमंत्री बनने के बाद, शास्त्री जी ने देश के विकास के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। “जय जवान,
जय किसान” का उनका नारा आज भी देश के किसानों और सैनिकों के लिए प्रेरणा स्रोत बना हुआ है।
शास्त्री जी ने न केवल देश की सुरक्षा और कृषि को प्राथमिकता दी,
बल्कि भारत के आर्थिक और सामाजिक ढांचे को मजबूत किया।
उनकी सादगी और देशभक्ति ने उन्हें लोगों के दिलों में एक स्थायी स्थान दिलाया।
उनका जीवन यह सिखाता है कि सच्ची नेतृत्व क्षमता हमेशा शक्ति या अधिकार से नहीं,
बल्कि समर्पण और सेवा से आती है।
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